Thursday, November 20, 2008

इंसानियत




जलती है अबला कोई तो,


क्या उसे बचाने जाओग,


तुम ऐसे इंसानियत हो,


जो दूर खड़े चिल्लाओगे,


उसकी अग्नि की गरमी से,


सर्दी दूर भगाओगे,


उसके जलने के बाद,


केवल शौक मनाओगे,


उसे बचा सके कोई ,


क्या ऐसा कोई मर्द नही,


अरे ओ दिल वाले लोगो ,


सिने में तुम्हारे दर्द नही,


उसकी चीख पुकारों से ,


कुछ असर नही तुम पर आया,


मूक बने वहा खडे रहे,


नहीं कोई बचाने उसे आया।

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