आज अंग्रेजी भाषा महत्वपूर्ण भाषा बन चुकी है। इसे विश्व भाषा के रूप में स्वीकार किया जाता है। हम दुनिया में कहीं भी चले जाएं, अगर हमें इस भाषा का ज्ञान है तो हमें कोई भी समस्या नहीं होगी। आज यह भाषा भाषा न होकर जीवन का महत्वपूर्ण अंग बन चुकी है। प्रत्येक व्यक्ति इसे सीखना चाहता है परंतु अफसोस वह उसे सीख नहीं पाता। इसका कारण यह है कि हमे यह भाषा याद करवाई अर्थात् रटवाई जाती है। विद्यार्थी भी यही समझते हैं कि शायद अंग्रजी भाषा को सीखने के लिए भाषा को रटना जरूरी है। इसलिए वे इस भाषा कों रटने लग जाते हैं। अध्यापक भी विद्यार्थियों को यह भाषा रटने के लिए कहते हैं। वास्तव में अध्यापक को भी इस बात का पता नहीं है कि अंग्रजी भाषा को कैँसे सीखा जाए तथा कैसे सिखाया जाए, क्योंकि वे भी इस भाषा को रट कर ही अध्यापक बने हैं। इस भाषा के सीख न पाने के कारण विद्यार्थियों को मानसिक बोझ सहना पड़ता है। विद्यार्थी अन्य विषय में चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हो अंग्रेजी भाषा के बिना उसका कोई महत्व नहीं है।
प्रत्येक वर्ष विद्यार्थी इसी भाषा में सबसे ज्यादा फेल होते हैं। कुछ विद्यार्थी तो इसके कारण आत्महत्या भी कर लेते हैं। विद्यार्थी कोङ्क्षचग सैन्टरों में जाकर भी इस भाषा को सीखना चाहते हैं लेकिन फिर भी वे इस भाषा को सीखने में असमर्थ होते हैं। वे कोचिंग सैन्टरों में जाकर अपना वक्त व पैसा दोनों बर्बाद करते हैं। अंग्रेजी का स्तर न होने के कारण उच्च शिक्षा का हमारा सपना टूट जाता है। विदेश जाने के लिए भी भाषा बहुत जरूरी है। ऐसा कौन सा तरीका है जिससे हम इस भाषा को सीख सकें और इस पहाड़ भरी बीमारी को जड़ से दूर कर सकें। इसके लिए सबसे जरूरी है कि हमें अनुवाद करना सीखना चाहिए अर्थात् हिंदी की अंग्रेजी और अंग्रेजी की हिंदी बनाना सीखना चाहिए। इसके लिए विद्यार्थी को स्वयं आगे आना होगा, उन्हें अंग्रेजी को रटने की बजाय अनुवाद सीखना चाहिए।अभिभावकों को भी इस बारे में अपने बच्चों का साथ देना चाहिए ताकि कैंसर जैसी इस बीमारी को जड़ से समाप्त किया जा सके।
पवन राठौर
एम.ए द्वितीय वर्ष
पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग
सिरसा।
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