Friday, November 20, 2009

जल है जीवन की तरंग

पानी का हमारे जीवन में क्या महत्व है, इस बात को कोई भी झुठला नहीं सकता। पानी के बिना सृष्टि का निर्माण नहीं किया जा सकता, क्योंकि जल ही जीवन है। जल के बिना जीवन की क ल्पना ही नहीं की जा सकती। आज यदि हमें यह कहा जाए कि किस समस्या का सामना हमें सबसे ज्यादा करना पड़ रहा है तो हमारा जवाब होगा कि पानी की समस्या हमारे लिए एक निंदनीय बनता जा रहा है। महंगाई की समस्या के साथ शायद हम जूझ सकेंंं लेकिन पानी की समस्या का सामना करना हमारे बस में नहीं है। पानी का स्तर आज इतना नीचे पहुंच गया है कि यह स्तर लुप्त होने के कगार पर खड़ा है। इस स्तर को हम कब खो दे इस बात का हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते। यह समस्या केवल एक व्यक्ति की समस्या नहीं है, बल्कि पूरे देश की समस्या बनती जा रही है। गुजरात, महाराष्ट्र तथा दिल्ली जैसे क्षेत्रों में पीने के लिए पानी भी कीमत चुकाकर लेना पडता है। जब इन क्षेत्रों में पानी की इतनी कमी हो तो आने वाले समय में आप इस आत का अंदाजा लगा सकते हैं कि पानी की कितनी कमी खल सकती है। एक दिन ऐसा समय आएगा, जब पानी की एक-एक बूंद के लिए व्यक्ति को मोहताज होना पड़ सकता हैे। वो समय दूर नहीं जब पानी के लिए भाई भाई का दुश्मन बन जाएगा। पानी के गिरते हुए स्तर का सबसे बड़ा कारण यह है कि घरों व फैक्ट्रियों में पानी का बहुत अधिक मात्रा में दुरूपयोग किया जा रहा है। आप ने कभी इस बात का अंदाजा लगाया है कि जो पानी आप व्यर्थ में बहा देते हैं, वह पानी कितने लोगों के काम आ सकता है। उस बहे हुए पानी की एक-एक बूंद से कितने लोगों की जि़ंदगी को बचाया जा सकता है। पानी की इस बढ़ती कमी के कारण क्या संकट पैदा हो सकता है इस बात का आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते। आज हमें इस बात की शपथ लेनी होगी कि पानी का व्यर्थ प्रयोग नहीं करेंगे तथा पानी की अधिक मात्रा को बचाकर रखेंगे। हम केवल स्वयं पानी की बचत नहीं करेंगेे बल्कि दूसरों को भी इसकी बचत के लिए पे्ररित करेंगे। यदि कोई व्यक्ति पानी का दुरूपयोग करता है तो हमारा कर्तव्य बनता है कि हम उसे इसकी कमी का ज्ञान करवाएं ताकि वह पानी के दुरूपयोग को कम करे। लोगों को जागरूक करके ही हम पानी की कमी से होने वाली इस समस्या से बच सकते हैं। इस समस्या से बचकर ही हम राष्ट्र को समृद्ध तथा विकसित देश बना सकते हैं।
पवन राठौर
एम.ए द्वितीय वर्ष
पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग
चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय
सिरसा।

दोबारा हुआ सृष्टि का निर्माण

दुनिया के खत्म होने की बात को लेकर लोग काफी सहमे हुए थे। लोगों के अंदर इस बात को लेकर बहुत चिंता बनी हुई थी कि 2012 में दुनिया का अंत हो जाएगा। दुनिया के अंत के बाद दुनिया की कल्पना करना एक अलग सा विषय बन जाता है। मीडिया में बार-बार इसी बात पर बल दिया जाता था कि 2012 में ऐसा तूफान आएगा जिससे कि दुनिया तहस-नहस हो जाएगी। यह विषय मीडिया में लंबे समय से चला आ रहा था। मीडिया में भी इस विषय को लेकर चिंता बनी हुई थी। मुंबई और गुजरात में आने वाले समुंद्री उफान की बात चल रही थी जिससे कि इस संसार का अंत उससे पहले भी हो सकता था, लेकिन मुंबई और गुजरात में ऐसा प्रलय न आने से यह बात तय हो गई है कि ऐसा कोई भी प्रलय नहीं आएगा जिससे कि दुनिया का अंत हो। एक वैज्ञानिक ने एक शोध के जरिये भी इस बात को तय कर दिया है कि अब दुनिया समाप्त् नहीं होगी और न ही ऐसा कोई प्रलय आएगा। 2012 के प्रलय को लेकर एक फिल्म जो कि दो या तीन दिनों मेें आने वाली है, इस बात से उस फिल्म का महत्व ही समाप्त हो जाएगा कि 2012 में इस सृष्टि का अंत नहीं होगा। इस जानकारी के बाद जाहिर है कि लोगों के अंदर एक उमंग की लहर उमड़ पडी होगी। दुनिया को खत्म होने की बात को लेकर लोगों के जीवन की गति बहुत धीमी पड गई थी, लेकिन इस बात को सुनकर कि 2012 मेंं यह संसार समाप्त नहीं होगा। इस बात से लोगों में जीवन की एक नई किरण देखी जा सकती है।
पवन राठौर
एम.ए द्वितीय वर्ष
पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग
चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय
सिरसा।


आखिर अंग्रेजी सीखना मुश्किल क्यों


आज अंग्रेजी भाषा महत्वपूर्ण भाषा बन चुकी है। इसे विश्व भाषा के रूप में स्वीकार किया जाता है। हम दुनिया में कहीं भी चले जाएं, अगर हमें इस भाषा का ज्ञान है तो हमें कोई भी समस्या नहीं होगी। आज यह भाषा भाषा न होकर जीवन का महत्वपूर्ण अंग बन चुकी है। प्रत्येक व्यक्ति इसे सीखना चाहता है परंतु अफसोस वह उसे सीख नहीं पाता। इसका कारण यह है कि हमे यह भाषा याद करवाई अर्थात् रटवाई जाती है। विद्यार्थी भी यही समझते हैं कि शायद अंग्रजी भाषा को सीखने के लिए भाषा को रटना जरूरी है। इसलिए वे इस भाषा कों रटने लग जाते हैं। अध्यापक भी विद्यार्थियों को यह भाषा रटने के लिए कहते हैं। वास्तव में अध्यापक को भी इस बात का पता नहीं है कि अंग्रजी भाषा को कैँसे सीखा जाए तथा कैसे सिखाया जाए, क्योंकि वे भी इस भाषा को रट कर ही अध्यापक बने हैं। इस भाषा के सीख न पाने के कारण विद्यार्थियों को मानसिक बोझ सहना पड़ता है। विद्यार्थी अन्य विषय में चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हो अंग्रेजी भाषा के बिना उसका कोई महत्व नहीं है।
प्रत्येक वर्ष विद्यार्थी इसी भाषा में सबसे ज्यादा फेल होते हैं। कुछ विद्यार्थी तो इसके कारण आत्महत्या भी कर लेते हैं। विद्यार्थी कोङ्क्षचग सैन्टरों में जाकर भी इस भाषा को सीखना चाहते हैं लेकिन फिर भी वे इस भाषा को सीखने में असमर्थ होते हैं। वे कोचिंग सैन्टरों में जाकर अपना वक्त व पैसा दोनों बर्बाद करते हैं। अंग्रेजी का स्तर न होने के कारण उच्च शिक्षा का हमारा सपना टूट जाता है। विदेश जाने के लिए भी भाषा बहुत जरूरी है। ऐसा कौन सा तरीका है जिससे हम इस भाषा को सीख सकें और इस पहाड़ भरी बीमारी को जड़ से दूर कर सकें। इसके लिए सबसे जरूरी है कि हमें अनुवाद करना सीखना चाहिए अर्थात् हिंदी की अंग्रेजी और अंग्रेजी की हिंदी बनाना सीखना चाहिए। इसके लिए विद्यार्थी को स्वयं आगे आना होगा, उन्हें अंग्रेजी को रटने की बजाय अनुवाद सीखना चाहिए।अभिभावकों को भी इस बारे में अपने बच्चों का साथ देना चाहिए ताकि कैंसर जैसी इस बीमारी को जड़ से समाप्त किया जा सके।
पवन राठौर
एम.ए द्वितीय वर्ष
पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग
सिरसा।