Tuesday, December 2, 2008




तुम मोहब्बत हो मोहब्बत का कैसे इजहार करूँ मै ।



तुम खुशबु हो खुशबु को कैसे गिरफ्तार करूँ मै ॥



सांसो में बस गई हो सरगम की तरह जानम ।



दिल में उतर गयी हो धड़कन की तरह जानम ॥



सांसो की डोर तोड़कर जीवन का सीसे वहिष्कार करूँ मै ।



धड़कन के शोर से डरकर दिल का कैसे तिरस्कार करूँ मै ॥



तुम खुशबु हो खुशबु को कैसे गिरफ्तार करूँ मै ॥



पलकों पे बस गई हो तुम ख्वाब की तरह ।



होटों पे सज गयी हो तुम गुलाब की तरह ॥



सपनो को भुलाकर खुमारी का कैसे एतबार करूँ मै ।



रंगीनियों को छोड़कर खुशिया का कैसे व्यापर करूँ मै ॥



तुम खुशबु हो खुशबु को कैसे गिरफ्तार करूँ मै ॥



लबो पे चढ़ गयी हो तुम सुमिरन की तरह ।



मेरे रोम रोम मै बसी हो तुम सिफ्रण की तरह ॥



पूजा बिना तुम्हारी कैसे संस्कार करूँ मै ।



तेरी यादो को भूलकर कैसे परिस्कार करूँ मै ॥



तुम खुशबु हो खुशबु को कैसे गिरफ्तार करूँ मै ॥

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