Tuesday, December 2, 2008
सच बोलता हूँ
तेरे सिवा किसी की कोई चाहत नहीं मुझें ।
बता ऐ दोस्त अपने लिए सोंचू किस तरह
तेरे बारे में सोचने से फुरशत नही मुझें ॥

होड़ लगी है आतंवाद की ।
देववाद की दनुजवाद की की ॥
मानवता को पूछो कौन ।
देखो तो सब पडे है मौन ॥
कुचल रहा है सबको देखो ।
आंतक नाश के बहाने से ॥
फेल रहा है उसका देखो ।
अपना पैर ठिकाने से ॥
किसको छोड़ा किसको बख्शा ।
जन नही तो जानो आज ॥
काबुल और कंधार को देखो ।
देखो भारत की बिगड़ी साज ॥
फांसी चढ़ते सद्दाम को देखो ।
देखो लुटती अबला की लाज ॥
इजरायल कब रोया है ।
याद करो उस को भी तुम ॥

तुम मोहब्बत हो मोहब्बत का कैसे इजहार करूँ मै ।
तुम खुशबु हो खुशबु को कैसे गिरफ्तार करूँ मै ॥
सांसो में बस गई हो सरगम की तरह जानम ।
दिल में उतर गयी हो धड़कन की तरह जानम ॥
सांसो की डोर तोड़कर जीवन का सीसे वहिष्कार करूँ मै ।
धड़कन के शोर से डरकर दिल का कैसे तिरस्कार करूँ मै ॥
तुम खुशबु हो खुशबु को कैसे गिरफ्तार करूँ मै ॥
पलकों पे बस गई हो तुम ख्वाब की तरह ।
होटों पे सज गयी हो तुम गुलाब की तरह ॥
सपनो को भुलाकर खुमारी का कैसे एतबार करूँ मै ।
रंगीनियों को छोड़कर खुशिया का कैसे व्यापर करूँ मै ॥
तुम खुशबु हो खुशबु को कैसे गिरफ्तार करूँ मै ॥
लबो पे चढ़ गयी हो तुम सुमिरन की तरह ।
मेरे रोम रोम मै बसी हो तुम सिफ्रण की तरह ॥
पूजा बिना तुम्हारी कैसे संस्कार करूँ मै ।
तेरी यादो को भूलकर कैसे परिस्कार करूँ मै ॥
तुम खुशबु हो खुशबु को कैसे गिरफ्तार करूँ मै ॥