Friday, October 9, 2009
शायरी--खिड़की से देखा तो
लम्हो मे जो कट जाए वो क्या जिंदगी,ऑसुओ मे जो बह जाए वो क्या जिंदगी,जिंदगी का फलसफां हि कुछ और है,जो हर किसी को समझ आए वो क्या जिंदगी ।सूरज पास न हो, किरने आसपास रहती है,दोस्त पास हो ना हो, दोस्ती आसपास रहती है,वैसे ही आप पास हो ना हो लेकिन,आपकी यादें हमेशा हमारे पास रहती है।सोचते थे हर मोड पर आप का इंतेज़ार करेंगे॥पर, पर, पर, पर, पर, पर, पर, पर, पर, कम्भाकत सड़क ही सीधी निकली...हम ने माँगा था साथ उनका, वो जुदाई का गम दे गए,हम यादो के सहारे जी लेते, वो भुल जाने की कसम दे गए!आपके दिल में बस्जयेंगे एस एम एस की तरह।,.,दिल में बजेंगे रिंगटोन की तरह.,.,दोस्ती कम नहीं होगी बैलेंस की तरह.,.,सिर्फ आप बीजी ना रहना नेटवोर्क की तरह.....खिड़की से देखा तो रस्ते पे कोई नहीं था,खिड़की से देखा तो रस्ते पे कोई नहीं था,रस्ते पे जा के देखा तो खिड़की पे कोई नहीं था...आंसुओ को लाया मत करो,दिल की बात बताया मत करो,लोग मुठ्ठी मे नमक लिये फिरते है,अपने जख्म किसी को दिखाया मत करो।
दूर होने का एहसास होता है...!!
हिचकियों से एक बात का पता चलता है, कि कोई हमे याद तो करता है,
बात न करे तो क्या हुआ, कोई आज भी हम पर कुछ लम्हे बरबाद तो करता है,
ज़िंदगी हमेशा पाने के लिए नही होती, हर बात समझाने के लिए नही होती,
याद तो अक्सर आती है आप की, लकिन हर याद जताने के लिए नही,
होती महफिल न सही तन्हाई तो मिलती है, मिलन न सही जुदाई तो मिलती है,
कौन कहता है मोहब्बत में कुछ नही मिलता, वफ़ा न सही बेवफाई तो मिलती है,
कितनी जल्दी ये मुलाक़ात गुज़र जाती है प्यास भुजती नही बरसात गुज़र जाती है,
अपनी यादों से कह दो कि यहाँ न आया करे नींद आती नही और रात गुज़र जाती है,
उमर की राह मे रस्ते बदल जाते हैं, वक्त की आंधी में इन्सान बदल जाते हैं,
सोचते हैं तुम्हें इतना याद न करें, लेकिन आंखें बंद करते ही इरादे बदल जाते हैं,
कभी कभी दिल उदास होता है हल्का हल्का सा आँखों को एहसास होता है,
छलकती है मेरी भी आँखों से नमी जब तुम्हारे दूर होने का एहसास होता है...!!
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लोग कहते हैं मुझे,
लोग कहते हैं मुझे,पत्थर सा दिल कर लो,सागर सा विशाल हृदय कर लो,चाँद-सूरज की तरह स्थिर हो जाओ,बुरा सपना समझ सब बातें भूल जाओ,देखो सब ठीक हो जाएगा….
कर लूँ मैं सब कुछ,जो तुम इन सवालों का जवाब दे दो,
पत्थर तब तलक ही द्रन रहता है,जब तलक़ हवा-पानी उसे हिलाने की ताक़त नहीं रखते,तेंज आँधियाँ जो सौ बार आएँ,पत्थर में भी अपने निशान छोड़ जाती हैं,और जो ना सह पाए वो,दरख्त की दरारें दे जाती हैं,और जो इससे भी ज़्यादा हद पर हो जाए,पत्थर को टुकड़े-टुकड़े कर,कंकड़ बना देती है…
तब कहाँ वो पत्थर कठोर रह पाता है?
सागर तब तलक ही विशाल रहता है,ग्रह-नक्षत्र, चाँद-तारे, उसके अनुकूल रहते हैं,जो दिशा-दशा बदले इनकी भी,ज्वार-भाटा, सूनामी कितने तूफान ले आते हैं,
तब कहाँ वो सागर शांत-गंभीर रह जाता है?
जो चाँद सूरज की बात करते हो,सूरज तपता रह जाता है,चाँद घटता-बढ़ता नज़र आता है,
दोनों भी स्थिर कहाँ रह पाते है?
जब ग्रहण दोनों को लग जाता है…
सपने रातों में आते है,नींद खुली टूट जाते है,
क्या दिल में दर्द, जिस्म में घाव देकर जाते है?
देखो सब ठीक हो जाएगा…कर लूँगीं मैं सब कुछ…जो तुम इन सवालों के…सही जवाब मुझको दे दो …
ना दे पाओ तो, इतना तो समझ लो, साधारण सा दिल और साधारण सी भावनाएँ लिए, मैं "पवन" हूँ… कुछ और ना बनने को कहो
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